प्रश्न – “2030 तक वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में वैश्विक दक्षिणी देशों की भूमिका महत्वपूर्ण है।“
उत्तर- वर्ष 2015 में COP 21 में पेरिस जलवायु समझौते को अपनाया गया
जिसमें इस सदी के अंत तक वैश्विक औसत तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक
सीमित करने के लक्ष्य स्वीकार किया गया था लेकिन इस दिशा में किए जा रहे
प्रयासों और शमन रणनीतियों में कमी के कारण यह लक्ष्य फिलहाल मुश्किल लग रहा है।
तापमान में वृद्धि वैश्विक समस्या है और जलवायु कार्रवाई को प्रभावी बनाने के लिए वैश्विक दक्षिणी
देशों को महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है । ग्लोबल साउथ का सामान्य अर्थ कम आय वाले देशों या अमीर उत्तरी देशों की
तुलना में अपेक्षाकृत कम सामाजिक-आर्थिक और औद्योगिक विकास वाले देशों से है जो
प्राय: विकासशील तथा अल्प विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं।
वैश्विक तापन लक्ष्य में ग्लोबल साउथ देशों की भूमिका
- वैश्विक दक्षिणी देश पहले से ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों
जैसे चरम मौसमी घटनाओं, स्वास्थ्य
समस्याओं, खाद्य असुरक्षा, आदि का
सामना कर रहा है। इसी क्रम में देशों के बीच असमानता भी बढ़ी है। आँकड़ों के
अनुसार दुनिया के सबसे अमीर और सबसे गरीब देशों के बीच आर्थिक असमानता दर 25%
से भी अधिक है ।
- सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करना इस बात पर भी निर्भर करता
है कि ग्लोबल साउथ के देश जैसे भारत, चीन, अफ्रीकी आदि देश जलवायु
परिवर्तन के प्रति लचीले व्यवहारों को कैसे अपनाते हैं।
- ऐतिहासिक ऊर्जा उत्सर्जन में विकसित देशों की भूमिका सर्वाधिक है और संभावना है कि भविष्य में विकासशील देश उत्सर्जन के सबसे बड़े केन्द्र होंगे क्योंकि यहां पर संरचनात्मक विकास अपेक्षाकृत कम हुए है और इन देशों में ऊर्जा क्षेत्र के अधिकांश बुनियादी ढांचे का निर्माण होना अभी भी बाक़ी है।
- भारत जैसे विकासशील देशों को अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने और सतत विकास के लक्ष्यों को पाने के लिए के लिए अतिरिक्त बिजली की माँग रहेगी।
- ग्लोबल साउथ के देश जैसे अफ्रीकी, एशियाई देश की उष्णकटिबंधीय स्थिति से नवीकरणीय ऊर्जा की आपार संभावनाएं है तथा विकसित देशों के सहयोग से स्वच्छ ऊर्जा द्वारा पर्यावरण एवं विकास का संतुलन बनाए रख सकते हैं।
हांलाकि COP
28 में कुछ सकारात्मक परिणाम आए है लेकिन लक्ष्यों की प्राप्ति
हेतु स्पष्ट तंत्र के अभाव, वित्त की कमी, जीवाश्म ईंधन की चरणबद्ध समाप्ति की समय सीमा न होना, नवीकरणीय ऊर्जा के प्रोत्साहन पर व्यापक सहमति के अभाव आदि के कारण अनेक
चुनौतियां बनी हुई है जिनमें ग्लोबल साउथ की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी।
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